Sunday 17 May 2020

MALLIKARJUN TEMPLE SHRISHAILAM ANDHRA PRADESH : JYOTIRLINGA 2ND

MALLIKARJUNA TEMPLE  SRISAILAM ANDHRA PRADESH : JYOTIRLINGA  2ND

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          The second jyotirling of Shiva , named Mallikarjuna Swamy is located in Srisailam, Andhra Pradesh, also termed as Kashi of the South. It is located at a distance of around 215 kms from Hyderabad in Nallamala hill forests along the banks of Krishna river. Legend has it that Shiva and Parvati descended to this place to appease an agitated Kartikeya since his younger brother Ganesha was getting married before him. The gigantic fort like temple complex houses Mallikarjuna Swamy and Bharmaramba Devi as its main deities. The other important attractions in the area include the Panchamathams, temple of Istakmeswari, Sakshi Ganes, Sikharam and Srisilam Dam. The best time to visit Srisailam is the monsoon season when the forests are green offering spectacular views.









श्री मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग आंध्र प्रदेश के कृष्णा जिले में कृष्णा नदी के तट पर पवित्र श्री शैल पर्वत पर स्थित है, जिसे दक्षिण का कैलाश भी कहा जाता है। शिवपुराण के अनुसार मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग शिव तथा पार्वती दोनों का सयुंक्त रूप है। मल्लिका का अर्थ है पार्वती और अर्जुन शब्द शिव का वाचक है। इस प्रकार से इस ज्योतिर्लिंग में भगवान शिव और देवी पार्वती दोनों की ज्योतियां प्रतिष्ठित हैं।





वे सत्पुरुषों की गति तथा अपने सभी भक्तों के मनोरथ पूर्ण करने वाले हैं।माना जाता है कि शिव, शिवा सहित आज भी इस पर्वत पर विराजमान हैं।सावन के महीने में यहां पर भारी मेला लगता है। देश-विदेश से शिवभक्त यहां भोलेनाथ के दर्शन के लिए आते हैं। मंदिर की बनावट तथा सुंदरता बड़ी ही विलक्षण है। सभा मंडप में नंदी जी की विशाल मूर्ति है। मंदिर के निकट ही श्री जगदम्बा जी का भी एक मंदिर है, जो 51 शक्तिपीठों में से एक है।श्री पार्वती जी यहां 'ब्रह्मराम्बा' या 'ब्रह्मराम्बिका' कहलाती हैं। कहा जाता है कि यहां माता सती की ग्रीवा (गर्दन) गिरी थी। ब्रह्मा जी ने सृष्टि कार्य की सिद्धि के लिए इनका पूजन किया था। मल्लिकार्जुन मंदिर की वास्तुकला बहुत सुंदर और जटिल है। विशाल मंदिर में द्रविड़ शैली में ऊंचे स्तंभ और विशाल आंगन बनाया गया है, जो कि विजयनगर वास्तुकला के बेहतरीन नमूनों में से एक माना जाता है।



शिव पुराण की कथा है कि श्री गणेश जी का प्रथम विवाह हो जाने से कार्तिकेय जी नाराज होकर माता-पिता के बहुत रोकने पर भी क्रोंच पर्वत पर चले गए। अनेकों देवताओं ने भी कुमार कार्तिकेय को लौटा ले आने की आदरपूर्वक बहुत चेष्टा की, किन्तु कुमार ने सबकी प्रार्थनाओं को अस्वीकार कर दिया। माता पार्वती और भगवान शिव पुत्र वियोग के कारण दुःख का अनुभव करने लगे और फिर दोनों स्वयं क्रोंच पर्वत पर चले गए। माता-पिता के आगमन को जान कर स्नेहहीन हुए कुमार कार्तिकेय और दूर चले गए। अंत में पुत्र के दर्शन की लालसा से जगदीश्वर भगवान शिव ज्योति रूप धारण कर उसी पर्वत पर विराजमान हो गए। उस दिन से ही वहां प्रादुर्भूत शिवलिंग मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग के नाम से विख्यात हुआ। शास्त्रों के अनुसार पुत्र स्नेह के कारण शिव-पार्वती प्रत्येक पर्व पर कार्तिकेय को देखने के लिए जाते हैं।अमावस्या के दिन स्वयं भगवान वहां जाते हैं और पूर्णिमा के दिन माता पार्वती जाती हैं।



ज्योतिर्लिंग के प्राकट्य की लोककथा

एक अन्य कथा के अनुसार इसी पर्वत के पास चन्द्रगुप्त नामक एक राजा की राजधानी थी। एक बार उसकी कन्या किसी विशेष विपत्ति से बचने के लिए अपने पिता के महल से भागकर इस पर्वत पर चली गई। वह वहीं ग्वालों के साथ कंद-मूल एवं दूध आदि से अपना जीवन निर्वाह करने लगी। उस राजकुमारी के पास एक श्यामा गाय थी, जिसका दूध प्रतिदिन कोई दुह लेता था। एक दिन उसने चोर को दूध दुहते देख लिया, जब वह क्रोध में उसे मारने दौड़ी तो गौ के निकट पहुंचने पर शिवलिंग के अतिरिक्त उसे कुछ न मिला। बाद में शिव भक्त राजकुमारी ने उस स्थान पर एक भव्य मंदिर का निर्माण करवाया और तब से भगवान मल्लिकार्जुन वहीं प्रतिष्ठित हो गए।



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